Ang 283-284 | Sri Guru Granth Sahib Ji | Meaning in Hindi | हिंदी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी - a podcast by Sikh Prayers

from 2022-03-17T06:18:24

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Ang 283


मन मूरख काहे बिललाईऐ ॥ पुरब लिखे का लिखिआ पाईऐ ॥ दूख सूख प्रभ देवनहारु ॥ अवर तिआगि तू तिसहि चितारु ॥ जो कछु करै सोई सुखु मानु ॥ भूला काहे फिरहि अजान ॥ कउन बसतु आई तेरै संग ॥ लपटि रहिओ रसि लोभी पतंग ॥ राम नाम जपि हिरदे माहि ॥ नानक पति सेती घरि जाहि ॥४॥


जिसु वखर कउ लैनि तू आइआ ॥ राम नामु संतन घरि पाइआ ॥ तजि अभिमानु लेहु मन मोलि ॥ राम नामु हिरदे महि तोलि ॥ लादि खेप संतह संगि चालु ॥ अवर तिआगि बिखिआ जंजाल ॥ धंनि धंनि कहै सभु कोइ ॥ मुख ऊजल हरि दरगह सोइ ॥ इहु वापारु विरला वापारै ॥ नानक ता कै सद बलिहारै ॥५॥


चरन साध के धोइ धोइ पीउ ॥ अरपि साध कउ अपना जीउ ॥ साध की धूरि करहु इसनानु ॥ साध ऊपरि जाईऐ कुरबानु ॥ साध सेवा वडभागी पाईऐ ॥ साधसंगि हरि कीरतनु गाईऐ ॥ अनिक बिघन ते साधू राखै ॥ हरि गुन गाइ अम्रित रसु चाखै ॥ ओट गही संतह दरि आइआ ॥ सरब सूख नानक तिह पाइआ ॥६॥


मिरतक कउ जीवालनहार ॥ भूखे कउ देवत अधार ॥ सरब निधान जा की द्रिसटी माहि ॥ पुरब लिखे का लहणा पाहि ॥ सभु किछु तिस का ओहु करनै जोगु ॥ तिसु बिनु दूसर होआ न होगु ॥ जपि जन सदा सदा दिनु रैणी ॥ सभ ते ऊच निरमल इह करणी ॥ करि किरपा जिस कउ नामु दीआ ॥ नानक सो जनु निरमलु थीआ ॥७॥


जा कै मनि गुर की परतीति ॥ तिसु जन आवै हरि प्रभु चीति ॥ भगतु भगतु सुनीऐ तिहु लोइ ॥ जा कै हिरदै एको होइ ॥ सचु करणी सचु ता की रहत ॥ सचु हिरदै सति मुखि कहत ॥ साची द्रिसटि साचा आकारु ॥ सचु वरतै साचा पासारु ॥ पारब्रहमु जिनि सचु करि जाता ॥ नानक सो जनु सचि समाता ॥८॥१५॥


सलोकु ॥ रूपु न रेख न रंगु किछु त्रिहु गुण ते प्रभ भिंन ॥ तिसहि बुझाए नानका जिसु होवै सुप्रसंन ॥१॥


असटपदी ॥ अबिनासी प्रभु मन महि राखु ॥ मानुख की तू प्रीति तिआगु ॥ तिस ते परै नाही किछु कोइ ॥ सरब निरंतरि एको सोइ ॥ आपे बीना आपे दाना ॥ गहिर ग्मभीरु गहीरु सुजाना ॥ पारब्रहम परमेसुर गोबिंद ॥ क्रिपा निधान दइआल बखसंद ॥ साध तेरे की चरनी पाउ ॥ नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥


Ang 284


मनसा पूरन सरना जोग ॥ जो करि पाइआ सोई होगु ॥ हरन भरन जा का नेत्र फोरु ॥ तिस का मंत्रु न जानै होरु ॥ अनद रूप मंगल सद जा कै ॥ सरब थोक सुनीअहि घरि ता कै ॥ राज महि राजु जोग महि जोगी ॥ तप महि तपीसरु ग्रिहसत महि भोगी ॥ धिआइ धिआइ भगतह सुखु पाइआ ॥ नानक तिसु पुरख का किनै अंतु न पाइआ ॥२॥


जा की लीला की मिति नाहि ॥ सगल देव हारे अवगाहि ॥ पिता का जनमु कि जानै पूतु ॥ सगल परोई अपुनै सूति ॥ सुमति गिआनु धिआनु जिन देइ ॥ जन दास नामु धिआवहि सेइ ॥ तिहु गुण महि जा कउ भरमाए ॥ जनमि मरै फिरि आवै जाए ॥ ऊच नीच तिस के असथान ॥ जैसा जनावै तैसा नानक जान ॥३॥


नाना रूप नाना जा के रंग ॥ नाना भेख करहि इक रंग ॥ नाना बिधि कीनो बिसथारु ॥ प्रभु अबिनासी एकंकारु ॥ नाना चलित करे खिन माहि ॥ पूरि रहिओ पूरनु सभ ठाइ ॥ नाना बिधि करि बनत बनाई ॥ अपनी कीमति आपे पाई ॥ सभ घट तिस के सभ तिस के ठाउ ॥ जपि जपि जीवै नानक हरि नाउ ॥४॥


नाम के धारे सगले जंत ॥ नाम के धारे खंड ब्रहमंड ॥ नाम के धारे सिम्रिति बेद पुरान ॥ नाम के धारे सुनन गिआन धिआन ॥ नाम के धारे आगास पाताल ॥ नाम के धारे सगल आकार ॥ नाम के धारे पुरीआ सभ भवन ॥ नाम कै संगि उधरे सुनि स्रवन ॥ करि किरपा जिसु आपनै नामि लाए ॥ नानक चउथे पद महि सो जनु गति पाए ॥५॥


रूपु सति जा का सति असथानु ॥ पुरखु सति केवल परधानु ॥ करतूति सति सति जा की बाणी ॥ सति पुरख सभ माहि समाणी ॥ सति करमु जा की रचना सति ॥ मूलु सति सति उतपति ॥ सति करणी निरमल निरमली ॥ जिसहि बुझाए तिसहि सभ भली ॥ सति नामु प्रभ का सुखदाई ॥ बिस्वासु सति नानक गुर ते पाई ॥६॥


सति बचन साधू उपदेस ॥ सति ते जन जा कै रिदै प्रवेस ॥ सति निरति बूझै जे कोइ ॥ नामु जपत ता की गति होइ ॥ आपि सति कीआ सभु सति ॥ आपे जानै अपनी मिति गति ॥ जिस की स्रिसटि सु करणैहारु ॥ अवर न बूझि करत बीचारु ॥ करते की मिति न जानै कीआ ॥ नानक जो तिसु भावै सो वरतीआ ॥७॥




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Voice : Manpreet Kaur Madan Website- https://www.srigurugranthsahibmeaning.com/ 

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