काश! मेरी कविता - a podcast by Mehak Kalra
from 2019-11-19T06:29:31
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मेरी कविता मेरे लिए मैं ही हूँ । वर्णों में, शब्दों में, पंक्तियों मे मैं ही हूँ। ये वो है, जिसे मैने बनाया है, खुद के लिए, खुद के अनुसार बनाया है। लेकिन ये मेरी कविता पूरी होकर भी अधूरी सी लगती है। ये कविता मिझे पूरा करके भी खुद अधुरी सी लगती है। यही अधूरापन कभी कभी मुझे भी अधूरा कर देता है। अपनी कविताओं की इसी अधूरेपन पर है, उए कविता। सुनिये और बताईये, कैसी लगी।
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